ग़ालिब ऐसी शख्सियत का नाम है जिनका व्यक्तित्व भी ग़ालिब था। आज से ठीक छः महीने पहले इनके जन्मदिवस के उपलक्ष्य पर इनकी ऊंगली इन्हें भेंट करने हेतु एक प्रार्थना पत्र दिया था। मैंने प्रार्थना पत्र दिया और सोच लिया था कि काम तो हो ही जाएगा।
वो तो भला हो Md Tabish Ghazali का जिसने मुझे प्रशासनिक मकड़जाल से अवगत करा दिया था और मुझे चुनौती देते हुए कहा था कि कुछ भी नहीं होगा इस प्रार्थना पत्र से। इस चुनौती को सहजता से स्वीकार किया था मैंने और लगन से लग गया इस महत्त्वपूर्ण काम को कराने में।
रजिस्ट्रार ऑफिस से स्कल्पचर ऑफिस और वहां से फाइनेंस विभाग के अनगिनत चक्कर लगाए। बहरहाल दो महीने के बाद पता चला कि पूरी मूर्ति ही जर्जर है और पूरी मूर्ति ठीक करवानी होगी। एक प्रार्थना पत्र फिर दिया जिसमें मैंने पूरी मूर्ति ठीक करवाने से बदलने तक की बात रखी और इस मुद्दे का स्तर उठाते हुए कुलपति महोदय तक अपनी बात पहुंचाई।
मार्च महीने में स्वर्गीय दादाजी के श्राद्ध कर्म में शरीक होने के बावजूद मैं स्कल्पचर डिपार्टमेंट के डीन साहब से लगातार संपर्क में बना रहा। अपनी लगनशीलता उन्हें दर्शाता रहा और नम्र निवेदन तथा प्रार्थना करता रहा। कई बार जज्बाती होकर कह देता था कि सर धरने पर बैठ जाऊंगा,सर गुस्सा भी हो जाते थे तो मुआफी मांग कर कहता कि सर, कृपया ग़ालिब के अगले जन्मदिन से पूर्व ये काम हो जाये तो अच्छा होता। डीन साहब आश्वस्त करते थे कि उस से पहले ही यह काम हो जाएगा।भरोसा तो बिल्कुल नहीं होता था और भरोसा करने के अलावे कोई चारा भी नहीं था।
बयालीस लाख का खर्च लगता पूरे मूर्ति को बदलने में। राजस्व के अभाव के कारण ठीक करवाने तक की ही मंजूरी के साथ कुलपति महोदय के ऑफिस से आदेश स्कल्पचर विभाग को दिया गया।
लगभग छः महीने के प्रशासनिक पापड़ बेलने के पश्चात यह कार्य वर्तमान में प्रगति पर है और भविष्य में ठीक भी हो जाएगा।
थोड़ी परेशानी,थोड़ी मेहनत,थोड़ा पसीना जरूर बहाया मैंने लेकिन एक पल में वो सब भूल गया जब स्कल्पचर विभाग के डीन साहब ने कहा कि मॉस मीडिया का एक छात्र ने आवेदन दिया था और मैंने उनसे कहा कि वो छात्र मैं हूँ।इस से पहले डीन साहब से फोन पे ही बात हुई थी। हालांकि कभी मुलाक़ात नहीं हुई थी।इस बार जब उनके आमने-सामने था तो वो कह रहे थे तुम्हीं धरने पर बैठने की धमकी दिया करते थे ना।
हंस दिया मैंने और उनसे हाथ मिलाकर धन्यवाद कहा।
*काम सारे होते हैं अगर आप उसके पीछे शिद्दत से पड़ जाए तो।
लेखक : बाल मुकुंद ठाकुर